Kaalsarp Yog | क्या है कालसर्प योग एवं उसके 12 प्रकार, कालसर्प का आपके जीवन पर क्या प्रभाव होगा ?

Kaalsarp Yog : क्या है कालसर्प योग एवं उसके 12 प्रकार, कालसर्प का आपके जीवन पर क्या प्रभाव होगा ? कालसर्प योग की शान्ति के क्या उपाय हैं ? जानिए विस्तारपूर्वक इस लेख में

 

किसी व्यक्ति के जन्म के समय ब्रह्माण्ड में प्रमुख ग्रहों एवं नक्षत्रों की जो स्थिति होती है वही उस व्यक्ति के कुंडली में दर्ज हो जाती है। कह सकते हैं की जन्म के समय की ग्रह एवं नक्षत्र स्थिति का स्नैपशॉट (snapshot) होता है कुंडली।

भारतीय ज्योतिष के अनुसार किसी भी व्यक्ति के जीवन में 9 ग्रहों एवं 27 नक्षत्रों का विशेष प्रभाव पड़ता है। कुंडली के विभिन्न भावों में इन 9 ग्रहों की स्थिति के आधार पर बहुत सारे शुभ-अशुभ योगों का निर्माण होता है। यदि कुंडली में शुभ योग अधिक हों तो व्यक्ति अपने जीवन में कम परिश्रम करके भी अधिक सुख-साधन प्राप्त कर लेता है। वहीँ अगर अशुभ योग अधिक हुए तो जीवन में अधिक संघर्ष करना पड़ता है।

 

Kaalsarp Yog | क्या है कालसर्प योग ?

भारतीय ज्योतिष में राहु और केतु को छाया ग्रह मन जाता है। इनका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है लेकिन यह व्यक्ति के जीवन पर व्यापक असर डालते हैं।

राहु और केतु ऐसे ग्रह हैं जो हमेशा एक दूसरे के सामने रहते हैं या यूँ कहें की एक दूसरे के सापेक्ष हमेशा 180 डिग्री पर होते हैं। यदि राहु कुंडली के पहले भाव में स्थित है तो केतु हमेशा सातवें भाव में होगा, यदि केतु ग्यारहवें भाव में है तो राहु हमेशा पांचवे भाव में स्थित होगा।

अब यदि किसी की कुंडली में बाकी सारे ग्रह राहु और केतु के axis के एक तरफ ही आ जाएँ तो यह एक योग का निर्माण करेगा जिसे हम कालसर्प योग के नाम से जानते हैं। उदहारण के लिए मान लेते हैं की किसी की कुंडली में राहु पंचम भाव में और केतु ग्यारहवें भाव में स्थित है। अब यदि बाकी सारे  ग्रह (सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र एवं शनि) राहु-केतु axis के एक ही तरफ यानी छठे, सातवें, आठवें, नौवें और दसवें भाव या फिर बारहवें, पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे भाव में ही स्थित हो जाएँ तो उस कुण्डली में कालसर्प योग माना जायेगा। इसे इस कुंडली को देख के समझ सकते हैं –

ऊपर दिखाए गए कुंडली में राहु दूसरे भाव में एवं केतु आठवें भाव में स्थित है और बाकी सारे ग्रह राहु-केतु अक्ष के एक ही तरफ यानी नौवें, दसवें, ग्यारहवें, बारहवें एवं पहले भाव में स्थित हैं। इस तरह इस कुंडली में कालसर्प योग बन रहा है।

 

कालसर्प योग के प्रकार, उनका प्रभाव एवं शान्ति के उपाय

जन्म कुंडली में बारह भाव होते हैं। इन बारह भावों में राहु-केतु की स्थिति के अनुसार मुख्य तौर पर कुल बारह प्रकार के कालसर्प योग बनते हैं।

 

1. अनंत कालसर्प योग

अनंत कालसर्प योग

यदि राहु प्रथम भाव में स्थित हो और केतु सप्तम भाव में, और उनके अक्ष के एक ही तरफ सारे अन्य ग्रह स्थित हो जाएँ तो अनंत कालसर्प योग बनता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इसके परिणाम निम्न हो सकते हैं –

  • ऐसी कुंडली वाले व्यक्ति को साँपों से बहुत भय लगता है। उसे अक्सर सांप से जुड़े हुए सपने आते हैं।
  • झूठ बोलने में, छल-कपट में ऐसा व्यक्ति माहिर होता है।
  • संतान को लेकर भी समस्याएं होती हैं।
  • अक्सर ऐसे व्यक्तियों का विवाह अचानक या अनचाहा होता है एवं वैवाहिक जीवन कष्टपूर्ण होता है।
  • इस योग के कारण कई बार कोर्ट-कचहरी के भी चक्कर लगाने पड़ते हैं।

शान्ति के उपाय –

इस योग की शांति के लिए बहते जल में चांदी के नाग नागिन का जोड़ा प्रवाहित करें।

 

2. कुलिक कालसर्प योग

कुलिक कालसर्प योग
कुलिक कालसर्प योग

यदि राहु दूसरे भाव में और केतु अष्टम भाव में स्थित हो तथा उनके बीच सारे अन्य ग्रह स्थित हो जाएँ तो कुलिक कालसर्प योग का निर्माण होता है।

इसके निम्नलिखित परिणाम देखे जा सकते हैं –

  • इस योग वाले कुंडली के व्यक्ति का व्यवहार ऐसा होता है जिसे समाज और परिवार के लोग अनुचित मानते हैं।
  • ऐसे व्यक्ति को न तो पैतृक धन मिलता है और न ही वह संचित धन को सुरक्षित रख पाता है। यदि पैतृक धन मिल भी जाये तो नष्ट हो जाता है।
  • प्रायः ऐसे व्यक्ति को बचपन या युवावस्था तक अपने पितृपक्ष के पूर्वज (दादा, परदादा, दादी, परदादी आदि) के सपने आते हैं।
  • कोई भी महत्वपूर्ण कार्य सफल होते होते रुक जाता है।

शान्ति के उपाय –

हनुमान जी के मंदिर में  मंगलवार और शनिवार को तिल के तेल का दिया जलाएं।

 

3. बासुकी कालसर्प योग

बासुकी कालसर्प योग

जब कुंडली के तृतीय भाव में राहु और नवम भाव में केतु स्थित हों और उनके बीच सारे ग्रह आ जाएँ तो इस योग को बासुकी कालसर्प योग कहा जाता है।

इसके फल निम्न हैं-

  • कुंडली में इस योग से प्रभावित व्यक्ति कभी तो बड़े से बड़ा काम भी अपनी मेहनत और लगन से पूरा कर देगा लेकिन कभी अपनी आलस्यता से ग्रसित होकर काम से जी चुराने लगता है और इस वजह से अपना नुकसान भी कर लेता है।
  • निकट सम्बन्धियों, मित्रों से अक्सर धोखा खाता है।
  • उसकी किस्मत जीवन में कई बार उसे उतार चढ़ाव दिखाती है।
  • ऐसे व्यक्ति का अपने जीवनसाथी से प्रायः मतभेद ही रहता है। दोनों का स्वभाव बिलकुल अलग होता है।
  • इस योग वाला व्यक्ति प्रायः नास्तिक होता है। अगर आस्तिक हुआ तो फिर बिलकुल अंधभक्त हो जाता है।

शान्ति के उपाय –

इस कालसर्प दोष के निवारण हेतु घर में शांति पूजा करवाते रहें।

 

4. शंखपाल कालसर्प योग

शंखपाल कालसर्प योग

यदि राहु चतुर्थ भाव में स्थित हो और केतु दशम भाव में और बाकी सारे ग्रह इन दोनों के अक्ष के एक ही तरफ स्थित हो जाएँ तो ऐसी स्थिति में शंखपाल कालसर्प योग का निर्माण होता है।

इस योग के फल निम्न प्रकार हो सकते हैं –

  • इस योग से प्रभावित व्यक्ति को बचपन या फिर युवावस्था तक भी आकाश में उड़ने या पहाड़ आदि से गिरने के स्वप्न बार बार आते हैं।
  • ऐसे व्यक्ति को अपनी माँ का अपेक्षित स्नेह नहीं मिलता। बड़े बुजुर्गों की अवहेलना का भी शिकार होता है।
  • ऐसा व्यक्ति सामाजिक कार्यों में खूब रूचि लेता है। इस कारण वह अपने घर में कम समय दे पाता है।
  • यद्दपि ऐसे जातक को खूब प्रसिद्धि मिलती है लेकिन जीवन में उसे कई बार उतार चढ़ाव देखना पड़ता है।
  • यदि व्यक्ति नौकरी करता है तो उसका बार बार स्थानांतरण होता रहेगा।

शान्ति के उपाय –

इस योग की शांति के लिए शुक्रवार को पानी वाले नारियल फल को किसी नदी में प्रवाहित करें।

 

5. पद्म कालसर्प योग

पद्म कालसर्प योग

जब कुंडली के पंचम भाव में राहु स्थित हो और ग्यारहवें भाव में केतु और बाकी सारे ग्रह राहु-केतु अक्ष के एक ही तरफ स्थित हों तो इस स्थिति में पद्म कालसर्प योग का निर्माण होता है। ऐसा व्यक्ति अपने पूर्वजों (यथा दादा,परदादा आदि) के शाप से शापित होता है या फिर उसके किसी पूर्वज ने ही उसके रूप में जन्म लिया होता है।

इस योग के निम्नलिखित परिणाम देखे जा सकते हैं –

  • अक्सर ऐसे व्यक्ति को युवावस्था तक बच्चों के कष्टों के सपने आते हैं। कई बार उसे अपने निकट के पूर्वज भी सपने में दिखाई देते हैं।
  • इस योग से प्रभावित व्यक्ति को बचपन से ही पेट सम्बन्धी बीमारियाँ झेलनी पड़ती हैं। दाहिना कन्धा व हाथ के दर्द से भी परेशान रहता है।
  • संतान प्राप्ति में विलंब होता है। बार बार गर्भपात हो जाता है। यदि पुत्र हुआ तो वह अपंग हो सकता है या हमेशा बीमार रह सकता है। या फिर उद्दंड हो सकता है। पुत्री हुई तो वह स्वस्थ होगी। पुत्र से ज्यादा पुत्रियां होने की संभावना होगी।
  • शिक्षा में बार बार बाधा आएगी और कई बार बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ सकती है।
  • ऐसे जातक की आय अनियमित होती है। कई बार क़र्ज़ भी लेना पड़ता है। जीवन में काफी धन कमाता है लेकिन लापरवाही में उसे खर्च भी कर देता है।
  • ऐसे व्यक्ति का भाग्य परिवर्तन 41 से 48 वर्ष की आयु के बीच होता है। उसे उच्च पद, धन, मान-सम्मान आदि सब कुछ प्राप्त होता है। लेकिन इन सबका सुख वह ज्यादा समय तक नहीं भोग पाता।

शान्ति के उपाय –

पद्म कालसर्प योग की शांति के लिए अपने घर के पूजा स्थल में एक मोर पंख अवश्य रखें।

 

6. महापद्म कालसर्प योग

महापद्म कालसर्प योग

जन्मकुंडली के छठे भाव में राहु स्थित हो और बारहवें भाव में केतु हो और बाकी सारे ग्रह इनके अक्ष के एक ही तरफ स्थित हो जाएँ तब महापद्म कालसर्प योग का निर्माण होता है।

इस योग के प्रभाव निम्नलिखित हो सकते हैं –

  • इस योग वाले व्यक्ति को बचपन से युवावस्था तक अपने पितृ पक्ष के पूर्वज (दादा, परदादा, आदि), साँप, भूकंप, जंगल, अन्धकार आदि के सपने बार बार आते हैं।
  • जातक अक्सर किसी न किसी रोग से पीड़ित रहता है। उसके अनेक शत्रु होते हैं लेकिन अंत में जीत उसकी ही होती है।
  • ऐसे व्यक्ति को हमेशा तनाव रहता है जिस वजह उसे नींद में समस्या होती है।
  • उसे प्रसिद्धि प्राप्त होती है।
  • ऐसे कुंडली वाले व्यक्ति को पैरों एवं गुदा स्थान के रोग हो सकते हैं।

शान्ति के उपाय –

महापद्म कालसर्प योग कि शांति के लिए चांदी से बनी सर्प के आकार की अंगूठी धारण करें।

 

7. तक्षक कालसर्प योग

तक्षक कालसर्प योग

यदि कुण्डली के सातवें भाव में राहु और प्रथम भाव में केतु स्थित हो एवं अन्य सभी ग्रह राहु-केतु अक्ष के एक तरफ ही आ जाएँ तब तक्षक कालसर्प योग बनता है।

इस योग के निम्न परिणाम हो सकते हैं –

  • ऐसे व्यक्ति को बचपन से युवावस्था तक भूत-प्रेत, जादू-टोना, श्मशान आदि के स्वप्न बार बार आते हैं।
  • इस योग से प्रभावित व्यक्ति बचपन में बार बार बीमार पड़ता है।
  • संतान से सुख में कमी रहती है।
  • इस योग से प्रभावित व्यक्ति कभी तो धर्म के मामले में अति करने लगता है तो कभी धर्म से बिलकुल ही विमुख होकर स्वच्छन्दचारी बन जाता है।
  • ऐसे व्यक्ति का विवाह अचानक होता है एवं उसके मन के विपरीत होता है।

शान्ति के उपाय –

इसकी शांति के लिए नियमित रूप से महामृत्युंजय मन्त्र का जाप करें।

 

8. कर्कोटक कालसर्प योग

कर्कोटक कालसर्प योग

यदि जन्मकुंडली के आठवें भाव में राहु और दूसरे भाव में केतु स्थित हो और इनके अक्ष के एक ही ओर बाकी सारे ग्रह स्थित हो जाएँ तब कर्कोटक कालसर्प योग बनता है।

इस योग के निम्नलिखित परिणाम होते हैं –

  • इस योग से ग्रसित व्यक्ति को अक्सर अपनी मृत्यु, एक्सीडेंट, शवयात्रा, पानी में डूबने, बीमार होने से सम्बंधित सपने बार बार आते हैं।
  • इन्हें अक्सर दूसरों की भलाई करने के चक्कर में खुद मुसीबत झेलनी पड़ जाती है।
  • गृहस्थ जीवन बहुत अधिक संतोषपूर्ण नहीं रहता।
  • ऐसी कुंडली वाले व्यक्ति कई बार ऐसे कार्य कर देते हैं जो अद्वितीय होते हैं।

शान्ति के उपाय –

इसकी शांति के लिए प्रतिवर्ष महामृत्युंजय जाप और रुद्राभिषेक करवाएं।

 

9. शंखनाद कालसर्प योग

शंखनाद कालसर्प योग

जब जन्मकुंडली के नौवें भाव में राहु एवं तीसरे भाव में केतु हो और अन्य सारे ग्रह राहु-केतु अक्ष के एक ही तरफ स्थित हों तो ऐसे योग को शंखनाद कालसर्प योग कहते हैं।

इसके निम्न फल हो सकते हैं –

  • ऐसे व्यक्ति को बचपन से युवावस्था तक धर्मस्थलों, पवित्र नदियों आदि के स्वप्न अक्सर आते हैं।
  • इनलोगों को अपने भाई बहनों के लिए बहुत कुछ त्याग करना पड़ता है।
  • अचानक से भाग्य उदय होता है।
  • वैवाहिक जीवन में कुछ समस्याएं आती रहती हैं जैसे जीवन साथी का अक्सर बीमार रहना या सहयोग न करना आदि।
  • धर्म, अध्यात्म में इन्हें कोई ख़ास रूचि नहीं होती और ये अक्सर पारंपरिक रीति रिवाज़ के खिलाफ ही रहते हैं।

शान्ति के उपाय –

हर शनिवार पीपल को जल चढ़ाएं और पीपल के वृक्ष की सात परिक्रमा करें।

 

10. घातक कालसर्प योग

घातक कालसर्प योग

यदि कुंडली के दशम भाव में राहु एवं चतुर्थ भाव में केतु हो और बाकी सारे ग्रह राहु-केतु अक्ष के एक ही तरफ आ जाएँ तो घातक कालसर्प योग का निर्माण होता है।

इस योग के फल निम्न प्रकार हो सकते हैं –

  • इस योग से प्रभावित व्यक्ति को बचपन से अपने घर में आग लगने, दीवार गिरने, भूत-प्रेत, साँप आदि के सपने अक्सर आते रहते हैं।
  • माता के सुख में कमी रहती है।
  • हर कार्य में कुछ न कुछ बाधा एवं परेशानी आती रहती है।
  • अपने जीवन काल में जातक को अनेक बार उत्थान और पतन देखने पड़ते हैं।

शान्ति के उपाय –

इस योग की शांति के लिए नियमित रूप से भगवान शिव की आराधना करें और ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप करें।

 

11. विषधर कालसर्प योग

विषधर कालसर्प योग

जब कुंडली के ग्यारहवें भाव में राहु और पंचम भाव में केतु हो और अन्य सभी ग्रह इनके अक्ष के एक तरफ हों तब ऐसे योग को विषधर कालसर्प योग कहेंगे।

इस योग के परिणाम निम्न प्रकार होंगे –

  • इस योग के व्यक्ति को प्रायः बचपन से परिवार के किसी सदस्य के चोट लगने, दुर्घटना होने के स्वप्न आते हैं।
  • जातक को शिक्षा प्राप्ति एवं पैसे कमाने के लिए भटकना पड़ता है।
  • पेट से सम्बंधित सर्जरी होने की संभावना रहती है।
  • उसे संतान प्राप्ति में विलम्ब हो सकता है।
  • ऐसी योग वाला व्यक्ति बहुत परिश्रमी होता है।
  • वह अपने जीवन में ख्याति प्राप्त करता है।

शान्ति के उपाय –

विषधर कालसर्प योग की शांति के लिए राहु मन्त्र का जाप करके पक्षियों को जौ के दाने खिलाएं।

 

12. शेषनाग कालसर्प योग

शेषनाग कालसर्प योग

यदि जन्मकुंडली के बारहवें भाव में राहु एवं छठे भाव में केतु स्थित हो और अन्य सभी ग्रह राहु-केतु अक्ष के एक ही तरफ स्थित हों तब इस योग को शेषनाग कालसर्प योग कहते हैं।

इस योग से जुड़े परिणाम निम्न होते हैं –

  • इस योग से प्रभावित व्यक्ति को बचपन से युवावस्था तक अपने माता पक्ष के पूर्वजों (नाना, नानी, परनाना आदि) के स्वप्न अक्सर आते हैं।
  • जातक अपने जीवन में ऐसा कार्य करता है जिसमें आखों का अधिक से अधिक उपयोग हो। इस कारण उसे आँखों से सम्बंधित परेशानियां हो सकती हैं।
  • ऐसे व्यक्ति को चर्म रोग, बवासीर आदि होने की भी संभावना होती है।
  • जातक को बहुत यात्राएं करनी पड़ती हैं। इससे उसे धन लाभ एवं ख्याति भी प्राप्त होती है।

शान्ति के उपाय –

शेषनाग कालसर्प योग की शांति के लिए पक्षियों को तीन महीने तक जौ से बनी रोटीयाँ खिलाएं।

 

हमें पूरी उम्मीद है की Kaalsarp Yog : क्या है कालसर्प योग एवं उसके 12 प्रकार, कालसर्प का आपके जीवन पर क्या प्रभाव होगा ? कालसर्प योग की शान्ति के क्या उपाय हैं ? इन सभी सवालों के जवाब हमने इस लेख के माध्यम से दे दिया है। फिर भी यदि आप पाठकों को इसमें कुछ कमी नज़र आती है या अन्य कोई सुझाव देना चाहते हों तो हमें जरूर कमेंट करके बताएं।

 

FAQs

कालसर्प योग

यदि किसी की कुंडली में बाकी सारे ग्रह राहु और केतु के axis के एक ही तरफ आ जाएँ तो ऐसे योग को कालसर्प योग कहा जाएगा।
कुंडली में इस योग के होने से व्यक्ति को हर काम में कुछ न कुछ बाधाओं एवं परेशानियों का सामना करना पड़ता है। व्यक्ति अपनी एक ही अवस्था में फँसा रहता है। हालाँकि कभी कभी यह योग सफलता के शिखर पर भी पहुँचा देता है।
इसका प्रभाव जीवन पर्यन्त रहता है लेकिन राहु अथवा केतु की महादशा/अन्तर्दशा में यह अधिक सक्रीय हो जाता है।
इसकी शांति का सबसे कारगर उपाय है नित्य शिव का ध्यान करना। लेख में बताये गए उपायों को भी आज़माया जा सकता है।

 

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