मिल्खा सिंह का जीवन परिचय

दोस्तों, मशहूर धावक मिल्खा सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे। हमने मिल्खा सिंह का जीवन परिचय एवं उनसे जुड़ी कुछ रोचक घटनाओं और उनके जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं को आपके सामने लाने का प्रयास इस लेख के जरिये किया है।

‘फ्लाइंग सिख’ के नाम से दुनिया भर में प्रसिद्ध भारत के महान धावक पद्मश्री मिल्खा सिंह का 91 साल की उम्र में निधन हो गया। 24 मई 2021 को कोविड-19 के बाद उन्हें न्यूमोनिया हो गया था। उन्हें मोहाली स्थित फोर्टिस अस्पताल में भर्ती कराया गया था। कुछ समय तक उनकी हालत स्थिर थी, लेकिन 18 जून 2021 को रात 11:30 बजे (IST) उनकी मृत्यु हो गई। उनकी पत्नी निर्मल सैनी की भी पाँच दिन पहले 13 जून 2021 को कोविड-19 के कारण 85 वर्ष की उम्र में मृत्यु हो गई थी। मिल्खा सिंह उस वक्त पीजीआई अस्पताल के आईसीयू में भर्ती थे। इस कारण वो अपनी पत्नी के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो सके थे। आइये जानते हैं मिल्खा सिंह के बारे में –

मिल्खा सिंह का जीवन परिचय 

मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर 1929 को एक सिख परिवार में गोविंदपुरा, पंजाब प्रांत (मुजफ्फरगढ़ जिला, पाकिस्तान) में हुआ था। वो 15 भाई-बहनों में से एक थे। उनके कई भाई बहन बचपन में ही गुजर गए थे। भारत-पाक़िस्तान विभाजन के दौरान हुई हिंसा में उनके माता-पिता, एक भाई और दो बहन मारे गए थे। इस घटना के बाद 1947 में वो शरणार्थी के रूप में भारत आ गए। दिल्ली में वो अपनी शादी-शुदा बहन के घर पर रहने लगे। लेकिन ज्यादा दिन तक वहाँ नहीं रहे। उन्होंने कुछ समय पुराना किला में एक रिफ्यूजी कैम्प और फिर एक रिफ्यूजी कॉलोनी में बिताया।

एक बार मिल्खा को डाकू बनने का भी विचार आया लेकिन अपने भाई मलखान सिंह के समझाने पर उन्होंने सेना में भर्ती की तैयारी शुरू की। तीन बार असफल रहने के बाद अंततः 1951 में उनका चयन हो गया। सेना में नौकरी के दौरान ही उनका परिचय एथलेटिक्स से हुआ। इसके पहले अपने घर और स्कूल के बीच की 10 किमी की दूरी वो हमेशा दौड़ कर पूरी किया करते थे। भर्ती के समय क्रॉस-कंट्री दौड़ में उन्होंने छठा स्थान पाया था। इन सब के आधार पर ही उनका चयन एथलेटिक्स के लिए किया गया।

 

पारिवारिक जीवन

उन्होंने 1962 में भारतीय महिला वॉलीबॉल टीम की पूर्व कप्तान निर्मल सैनी से शादी की थी। उनकी तीन बेटियां और एक बेटा हैं। बेटे का नाम जीव मिल्खा सिंह है जो की एक गोल्फर हैं। उन्होंने हवलदार बिक्रम सिंह, जो टाइगर हिल के युद्ध में शहीद हो गए थे, के बेटे को गोद लिया है।

 

अंतर्राष्ट्रीय करियर 

मिल्खा ने सेना में रहकर दिन रात मेहनत की और अपने आपको 200 और 400 मीटर दौड़ों के लिए तैयार किया। 1956 के मेलबर्न ओलंपिक में 200 मीटर और 400 मीटर प्रतियोगिताओं में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया। 1958 में  कटक में आयोजित राष्ट्रीय खेलों में 200  मीटर और 400 मीटर के लिए उन्होंने रिकॉर्ड बनाया और दोनों प्रतियोगिताओं में उन्हें स्वर्ण पदक मिले। 1958 के राष्ट्रमंडल खेलों में 46.6 सेकंड में ही 400 मीटर की दौड़ पूरी की और वो स्वर्ण पदक जीतने वाले भारत के प्रथम व्यक्ति बन गए।

1960 के रोम ओलंपिक में वो पदक से चूक गए जिसका मलाल उन्हें काफी दिनों तक रहा। उसी वर्ष उन्हें पाकिस्तान में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय एथलीट चैंपियनशिप में भाग लेने का न्योता मिला। बंटवारे का दर्द और वहां से जुड़ी यादों के कारण वह पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें समझाया और वो राज़ी हो गए।

उन दिनों अब्दुल खालिक पाकिस्तान के सबसे तेज धावक थे। मुक़ाबले का दिन आया। जब दौड़ शुरू हुई तो मिल्खा की रफ्तार के आगे  अब्दुल खालिक कहीं भी टिक नहीं पाए। दौड़ ख़त्म होने के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने कहा ” मिल्खा सिंह आज तुम दौड़े नहीं उड़े हो, इसलिए हम तुम्हें फ्लाइंग सिख का खिताब देते हैं “। इसके बाद से ही दुनिया उन्हें फ्लाइंग सिख के नाम से पुकारने लगी।

 

एक गलती जिसका ज़िन्दगी भर मलाल रहा 

1960 के रोम ओलम्पिक से कई दिन पहले से ही मिल्खा सिंह को पदक का दावेदार माना जाने लगा था। उनके अनुसार रोम जाने से पहले उन्होंने करीब 80 दौड़ों में हिस्सा लिया और 77 में जीत हासिल की। पूरी दुनिया में ये चर्चा थी की 400 मीटर की दौड़ अगर कोई जीतेगा तो  मिल्खा सिंह ही जीतेगा।

फाइनल को याद करते हुए वो कहते हैं -” मैं 250 मीटर तक तो सबसे आगे चल रहा था। तभी मेरे दिल में ख्याल आया की मैं इतनी तेज़ी से दौड़ रहा हूँ, कहीं ऐसा न हो की मैं इस दौड़ को पूरा ही ना कर पाऊँ। मैंने अपनी गति कम कर दी। जब मैं आखिरी राउंड में था और महज 100 मीटर की दूरी बची थी तब मैंने देखा की तीन चार धावक जो मुझसे पीछे दौड़ रहे थे , मुझसे आगे निकल गए। मैंने उन्हें पकड़ने की कोशिश की लेकिन तब तक समय निकल चुका था। उस समय मुझसे जो गलती हुई उससे मेरी क़िस्मत का सितारा और साथ साथ भारत का पदक भी उसी समय मेरे हाथ से गिर गया।” कुछ लोगों का ये भी कहना है की मिल्खा ने अपने पीछे आ रहे धावकों को देखने की कोशिश की जिससे उनकी लय टूट गयी और यही उनके हार का कारण बनी।

बाद में जकार्ता में आयोजित 1962 के एशियाई खेलों में उन्होंने 400 मीटर  और 4 x 400 मीटर रिले में स्वर्ण पदक जीता।

 

सम्मान 

मिल्खा को 1958 के एशियाई खेलों में उनकी सफलताओं के सम्मान में सिपाही के पद से जूनियर कमीशंड अधिकारी के पद पर पदोन्नत किया गया। बाद में पंजाब सरकार ने उन्हें शिक्षा विभाग में  ‘ खेल निदेशक ‘ के पद पर नियुक्त किया। इस पद से वे 1998 में सेवानिवृत हुए।  वर्ष 1958 में ही उन्हें भारत के चौथे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार ‘ पद्मश्री ‘ से सम्मानित किया गया। 2001 में उन्होंने भारत सरकार से अर्जुन पुरस्कार के एक प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। उनका कहना था की इस पुरस्कार का उद्देश्य युवा खिलाड़ियों को पहचानना था, न कि उनके जैसे वृद्ध खिलाडियों को।

 

सारे पदक कर दिए देश को समर्पित 

उन्होंने अपने सभी पदक देश को दान कर दिए हैं। इन पदकों को नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में प्रदर्शित किया गया और बाद में पटियाला के एक खेल संग्रहालय में स्थानांतरित कर दिया गया।

 

भाग मिल्खा भाग – मूवी 

मिल्खा सिंह और उनकी बेटी सोनिया सांवल्का ने उनकी आत्मकथा ‘द रेस ऑफ माई लाइफ’ लिखी है। यह 2013 में प्रकाशित हुआ था। इसी किताब पर  ‘ भाग मिल्खा भाग ‘ नाम से 2013 एक फिल्म भी बनी है जिसका निर्देशन राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने किया है। इसमें फरहान अख्तर ने मुख्य भूमिका निभाई है। उनके अलावा इसमें दिव्या दत्ता और सोनम कपूर प्रमुख किरदार में हैं।

इस फिल्म को पुरे देश में वाहवाही मिली। राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में इसने सबसे लोकप्रिय फिल्म का पुरस्कार जीता और 2014  में अंतर्राष्ट्रीय भारतीय फिल्म अकादमी पुरस्कारों में 5 पुरस्कार जीते। फिल्म ने 100 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई की। मिल्खा ने अपनी जीवनी पर फिल्म बनाने की अनुमति देने के बदले फिल्म के निर्देशक से मात्र 1 रुपया लिया। राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने उन्हें जो 1 रूपये का नोट दिया वह सन 1958 का था। इसी साल मिल्खा सिंह ने राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के लिए पहला स्वर्ण पदक जीता था।

सितंबर 2017 में मिल्खा सिंह की मोम की प्रतिमा लंदन में मैडम तुसॉद के मूर्तिकारों द्वारा बनाई गई। चंडीगढ़ में इसका अनावरण किया गया।  इस प्रतिमा को नई दिल्ली, भारत में मैडम तुसॉद संग्रहालय में रखा गया है।

 

पदक  

कॉमनवेल्थ गेम्स :

  •   स्वर्ण (440 यार्ड) – 1958 , कार्डिफ

एशियन गेम्स :

  •   स्वर्ण (200 मीटर) – 1958 , टोक्यो
  •   स्वर्ण (400 मीटर) – 1958 , टोक्यो
  •   स्वर्ण (400 मीटर) – 1962 , जकार्ता
  •   स्वर्ण (4 x 400 मीटर – रीले ) – 1962 , जकार्ता

नेशनल गेम्स :

  •  स्वर्ण (200 मीटर) – 1958 , कटक
  •  स्वर्ण (400 मीटर) – 1958 , कटक
  •  रजत (400 मीटर) – 1964 , कोलकाता

 

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