पंचतंत्र की कहानियाँ-2022

पंचतंत्र की कहानियाँ

रंगा सियार

चंडरव नामक एक भूखा सियार भोजन की तलाश में भटकता हुआ जंगल के निकट स्थित एक गाँव में चला गया। गाँव की गलियों में घूमते हुए उसे कुछ कुत्तों ने देख लिया और उस पर टूट पड़े।

किसी तरह जान बचाकर चंडरव वहाँ से भागा और एक मकान में घुस गया। वह मकान एक धोबी का था। मकान के एक कोने में बड़ा सा नाद रखा हुआ था। चंडरव उसमें छुप कर बैठ गया। वह रात भर वहीं छिपा रहा।

सुबह होने तक कुत्ते वहाँ से जा चुके थे। चंडरव ड्रम से निकल कर जंगल की ओर भागा। उसे बड़े ज़ोरों की प्यास लगी थी। वह पानी पीने नदी किनारे गया, तो पानी में अपनी परछाई देख चौंक गया। किसी अनोखे जानवर की आशंका से पहले तो वह डर गया। जब उसने ध्यान से देखा तो उसे समझ आया की यह उसकी ही परछाई है और उसका रंग नीला हो चुका है। दरअसल रात में वह जिस नाद में छुपकर बैठा था, उसमें धोबी ने नील घोला हुआ था। उस नील का रंग चंडरव के शरीर पर चढ़ गया था।

पानी पीकर जब वह जंगल में पहुँचा, तो दूसरे जानवर उसे देख डर गए। नीले रंग का विचित्र जानवर उन्होंने कभी नहीं देखा था। वे उससे डर कर भागने लगे।

चंडरव ने जानवरों को भयभीत देखा, तो बड़ा खुश हुआ। उसके दिमाग में जानवरों को मूर्ख बनाकर जंगल का राजा बनने का विचार कौंधा।

उसने भागते हुए जानवरों को रोका और उन्हें अपने पास बुलाकर बोला, “मित्रों, मुझसे डरने की कोई जरुरत नहीं। मैं ब्रह्मा जी का दूत हूँ।  उन्होंने मुझे तुम लोगों की रक्षा के लिए भेजा है। इस जंगल का कोई राजा नहीं है। अब से मैं तुम्हारा राजा हूँ। तुम लोगों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी अब मेरी है। तुम मेरे राज में आनंद से रहो।”

सभी जानवर उसकी बातों में आ गए और उसे अपना राजा स्वीकार कर लिया। उसने शेर को अपना मंत्री, चीते को अपना सेनापति और भेड़िये को अपना संतरी नियुक्त कर लिया। सियारों को उसने जंगल से निकाल दिया क्योंकि उसे उनके द्वारा पहचाने जाने का डर था।

अब चंडरव के मजे हो गए। दिन भर वह छोटे जानवरों से अपनी सेवा करवाता। हाथी की सवारी कर जंगल में घूमता। शेर, चीते और भेड़िये उसके लिए शिकार कर लाते। वह छककर उसका भक्षण करता और बचा हुआ मांस उन्हें दे देता। दिन बड़े ही मज़े में गुजर रहे थे।

लेकिन झूठ आखिर कितने दिन छुपता ? एक न एक दिन तो पर्दाफाश होना ही था।

एक सुबह चंडरव सोकर उठा और अपनी मांद से निकला। अचानक उसे कहीं दूर से सियारों की हुआ-हुआ की आवाज़ सुनाई पड़ी। चंडरव आखिर था तो सियार ही। वह भूल गया कि उसने अन्य जानवरों के सामने ब्रह्मा के भेजे दूत होने का नाटक किया है और वह भी मदमस्त होकर हुआ-हुआ चिल्लाने लगा।

जब दूसरे जानवरों ने उसकी आवाज़ सुनी, तो समझ गए कि वास्तव में वह एक सियार है और उन्हें मूर्ख बनाकर उनका राजा बना बैठा है। सब उसे मारने के लिए उसके पीछे दौड़े। चंडरव ने भागने का प्रयास किया, किंतु शेर-चीते के पंजों से बच ना सका और मारा गया।

सीख :–

  • झूठ बोलने का नतीजा हमेशा बुरा ही होता है। 

 

दो मछलियाँ और एक मेंढक

एक तालाब में शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि नामक दो मछलियाँ रहा करती थी। उसी तालाब में एकबुद्धि नामक मेंढक भी रहता था। एक ही तालाब में रहने के कारण तीनों में अच्छी मित्रता थी।

दोनों मछलियों शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि को अपनी बुद्धि पर बड़ा अभिमान था और वे अपनी बुद्धि का गुणगान करने से कभी चूकती नहीं थीं।  एकबुद्धि सदा चुपचाप उनकी बातें सुनता रहता। उसे पता था कि शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि के सामने उसकी बुद्धि कुछ नहीं है।

एक शाम वे तीनों तालाब किनारे वार्तालाप कर रहे थे। तभी समीप के तालाब से मछलियाँ पकड़कर घर लौटते मछुआरों की बातें उनकी कानों में पड़ी। वे अगले दिन उस तालाब में जाल डालने की बात कर रहे थे, जिसमें शतबुद्धि, सहस्त्रबुद्धि और एकबुद्धि रहा करते थे।

यह बात ज्ञात होते ही तीनों ने उस तालाब में रहने वाली मछलियों और जीव-जंतुओं की सभा बुलाई और मछुआरों की बातें उन्हें बताई। सभी चिंतित हो उठे और शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि से कोई उपाय निकालने की विनती करने लगे।

सहस्त्रबुद्धि सबको समझाते हुए बोली, “चिंता की कोई बात नहीं है। दुष्ट व्यक्ति की हर कामना पूरी नहीं होती। मुझे नहीं लगता वे आयेंगे। यदि आ भी गए, तो किसी न किसी उपाय से मैं सबके प्राणों की रक्षा कर लूंगी।”

शतबुद्धि ने भी सहस्त्रबुद्धि की बात का समर्थन करते हुए कहा, “डरना कायरों और बुद्धिहीनों का काम है। मछुआरों के कथन मात्र से हम अपना वर्षों का गृहस्थान छोड़कर प्रस्थान नहीं कर सकते। मेरी बुद्धि आखिर कब काम आयेगी? कल यदि मछुआरे आयेंगे, तो उनका सामना किसी भी युक्तिपूर्ण तरीके से कर लेंगे। इसलिए डर और चिंता का त्याग कर दें।”

तालाब में रहने वाली मछलियों और जीवों को शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि के द्वारा दिए आश्वासन पर विश्वास हो गया। लेकिन एकबुद्धि को इस संकट की घड़ी में पलायन करना उचित लगा। अंतिम बार वह सबको आगाह करते हुए बोला, “मेरी एकबुद्धित कहती है कि प्राणों की रक्षा करनी है, तो यह स्थान छोड़कर अन्यत्र जाना सही है। मैं तो जा रहा हूँ। आप लोगों को चलना है, तो मेरे साथ चलें।”

इतना कहकर वह वहाँ से दूसरे तालाब में चला गया। किसी ने उस पर विश्वास नहीं किया और शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि की बात मानकर उसी तालाब में रहे।

अलगे दिन मछुआरे आये और तालाब में जाल डाल दिया। तालाब की सभी मछलियाँ उसमें फंस गई। शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि ने अपने बचाव के बहुत प्रयास किये, परन्तु सब व्यर्थ रहा। मछुआरों के सामने उनकी कोई युक्ति नहीं चली और वे उनके जाल में फंस ही गईं।

जाल बाहर खींचने के बाद सभी मछलियाँ तड़प-तड़प कर मर गई। मछुआरे भी जाल को अपने कंधे पर लटकाकर वापस अपने घर के लिए निकल पड़े। शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि बड़ी मछलियाँ थीं। इसलिए मछुआरों ने उन्हें जाल से निकालकर अपने कंधे पर लटका लिया था।

जब एकबुद्धि ने दूसरे तालाब से उनकी ये दुर्दशा देखी, तो सोचने लगा : अच्छा हुआ कि मैं एकबुद्धि हूँ और मैंने अपनी उस एक बुद्धि का उपयोग कर अपने प्राणों की रक्षा कर ली। शतबुद्धि या सहस्त्रबुद्धि होने की अपेक्षा एकबुद्धि होना ही अधिक व्यवहारिक है।

सीख :–

  •  अपनी बुद्धि का अहंकार कभी नहीं करना चाहिए।
  •  एक व्यवहारिक बुद्धि सौ अव्यवहारिक बुद्धियों से कहीं बेहतर है। 

साँप और कौवा

किसी नगर के पास एक विशाल बरगद का पेड़ था। उस पेड़ पर एक घोंसला था, जिसमें वर्षों से कौवा का एक जोड़ा रहा करता था। वे वहाँ बड़ा ही सुखमय जीवन व्यतीत कर रहे थे। दिन भर भोजन की तलाश में वे बाहर रहते और शाम ढलने पर घोंसले में लौटकर आराम करते।

एक दिन एक काला साँप भटकते हुए उस बरगद के पेड़ के पास आ गया। पेड़ के तने में एक बड़ा खोल देख वह वहीं निवास करने लगा। कौवा-कौवी इस बात से अनजान थे। उनकी दिनचर्या यूं ही चलती रही।

मौसम आने पर कौवी ने अंडे दिए। कौवा और कौवी दोनों बड़े प्रसन्न थे और अपने नन्हे बच्चों के अंडों से निकलने की प्रतीक्षा करने लगे। लेकिन एक दिन जब दोनों भोजन की तलाश में निकले, तो मौका पाकर पेड़ की खोल में रहने वाले साँप ने पेड़ पर जाकर उनके अंडों को खा लिया और चुपचाप अपनी खोल में आकर सो गया।

कौवा-कौवी ने लौटने पर जब अंडों को घोंसलों में नहीं पाया, तो बहुत दु:खी हुए। उसके बाद से जब भी कौवी अंडे देती, साँप उन्हें खाकर अपनी भूख मिटा लेता। कौवा-कौवी रोते रह जाते।

मौसम आने पर कौवी ने फिर से अंडे दिए। लेकिन इस बार वे सतर्क थे। वे जानना चाहते थे कि आखिर उनके अंडे कहाँ गायब हो जाते हैं।

योजना के अनुसार एक दिन वे रोज़ की तरह घोंसले से बाहर निकले और दूर जाकर पेड़ के पास छुपकर अपने घोंसले की निगरानी करने लगे।  कौवा-कौवी को बाहर गया देख काला साँप पेड़ की खोल से निकला और घोंसले में जाकर अंडों को खा गया।

आँखों के सामने अपने बच्चों को मरते देख कौवा-कौवी तड़प कर रह गए।  वे साँप का सामना नहीं कर सकते थे। वे उसकी तुलना में कमज़ोर थे। इसलिए उन्होंने अपने वर्षों पुराने निवास को छोड़कर कहीं और जाने का निर्णय कर लिया।

जाने से पहले वे अपने मित्र गीदड़ से अंतिम बार भेंट करने पहुँचे। गीदड़ को पूरी बात सुनाकर जब वे विदा लेने लगे, तो गीदड़ बोला, “मित्रों, इस तरह भयभीत होकर अपना वर्षों पुराना घर छोड़ना सही नहीं है। समस्या सामने है, तो उसका कोई न कोई हल अवश्य होगा।”

कौवा बोला, “मित्र, हम कर भी क्या सकते हैं। उस दुष्ट साँप की शक्ति के सामने हम लाचार हैं। हम उसका मुकाबला नहीं कर सकते। अब कहीं और जाने के अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं है। हम हर समय अपने बच्चों को मरते हुए नहीं देख सकते।”

गीदड़ कुछ सोचते हुए बोला, “मित्रों, जहाँ शक्ति काम न आये, वहाँ बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए।” यह कहकर उसने साँप से छुटकारा पाने की एक तरकीब कौवा-कौवी को बताई।

अगले दिन कौवा-कौवी नगर के तालाब में पहुँचे, जहाँ राज्य की राजकुमारी अपने सहेलियों के साथ रोज़ स्नान करने आया करती थी। उस दिन भी राजकुमारी अपने वस्त्र और आभूषण किनारे रख तालाब में स्नान कर रही थी। पास ही सैनिक निगरानी कर रहे थे।

अवसर पाकर कौवे ने राजकुमारी का हीरों का हार अपनी चोंच में दबाया और काँव-काँव करता हुआ राजकुमारी और सैनिकों को दिखाते हुए ले उड़ा।

कौवे को अपना हार ले जाते देख राजकुमारी चिल्लाने लगी। सैनिक कौवे के पीछे भागे। वे कौवे के पीछे-पीछे उसी बरगद के पेड़ के पास पहुँच गए जहाँ कौवे रहते थे। कौवा यही तो चाहता था। राजकुमारी का हार पेड़ के खोल में गिराकर वह उड़ गया। सैनिकों ने यह देखा, तो हार निकालने पेड़ की खोल के पास पहुँचे।

हार निकालने के लिए उन्होंने खोल में एक डंडा डाला। उस समय सांप खोल में ही आराम कर रहा था। डंडे के स्पर्श से वह गुस्से से बाहर निकला। सांप को देख सैनिक हरक़त में आ गए और उसे डंडे और भाले से पीट-पीट कर मार डाला।

सांप के मरने के बाद कौवा-कौवी ख़ुशी-ख़ुशी अपने घोंसले में रहने लगे। उस वर्ष जब कौवी ने अंडे दिए, तो वे सुरक्षित रहे।

सीख :

  • बुद्धि से बड़ी से बड़ी समस्या का हल निकाला जा सकता है।          

 

मूर्ख गधा

गाँव में रहने वाले एक धोबी के पास उद्धत नामक एक गधा था। धोबी गधे से पूरा दिन काम लेता, लेकिन खाने को कुछ नहीं देता था। हाँ, रात्रि के पहर वह उसे खुला अवश्य छोड़ देता था, ताकि इधर-उधर घूमकर वह कुछ खा सके। गधा रात भर खाने की तलाश में भटकता रहता और धोबी की मार के डर से सुबह-सुबह घर वापस आ जाया करता था।

एक रात खाने के लिए भटकते-भटकते गधे की भेंट एक सियार से हुई। सियार ने गधे से पूछा, “मित्र! इतनी रात को कहाँ भटक रहे हो?”

गधे ने उदास होकर सियार को अपनी व्यथा सुनाई, “मित्र, मैं  दिन भर अपनी पीठ पर कपड़े लादकर घूमता हूँ। दिन भर की मेहनत इतनी मेहनत करने के बाद भी धोबी मुझे खाने को कुछ नहीं देता। इसलिए मैं रात में खाने की तलाश में निकलता हूँ। आज मेरी किस्मत ख़राब है, मुझे खाने को कुछ भी नहीं मिला।  मैं इस जीवन से तंग आ चुका हूँ। ”

गधे की व्यथा सुनकर सियार को तरस आ गया। वह उसे सब्जियों के एक खेत में ले गया। ढेर सारी सब्जियाँ देखकर गधे की आँखों में चमक आ गई। वह बहुत प्रसन्न हुआ। उसने वहाँ पेट भर कर सब्जियाँ खाईं और सियार को धन्यवाद देकर वापस धोबी के पास आ गया। उस दिन के बाद से गधा और सियार रात में  सब्जियों के उस खेत में मिलने लगे।  गधा जी भरकर सब्जिया खाता। धीरे-धीरे उसका शरीर भरने लगा और वह मोटा-ताज़ा हो गया। वह अपना सारा दुःख भूलकर मज़े में रहने लगा।

एक रात पेट भर सब्जियाँ खाने के बाद गधा मदमस्त हो गया। वह स्वयं को संगीत का बहुत बड़ा ज्ञाता समझता था। वह गाना गाने को व्याकुल हो गया। उसने सियार से कहा, “मित्र, आज मैं बहुत ख़ुश हूँ और मेरा मन कर रहा है की मैं गाना गाउँ ”

गधे की बात सुनकर सियार बोला, “मित्र, क्या तुम भूल गए कि हम यहाँ चोरी-छुपे घुसे हैं। अगर तुम्हारी आवाज़ खेत के रखवाले ने सुन ली और वह यहाँ आ गया, तो हमारी खैर नहीं। मेरी बात मानो, हम यहाँ से चलते हैं।”

गधे को सियार की बात बुरी लग गई। वह मुँह बनाकर बोला, “तुम जंगल में रहने वाले जंगली हो। तुम्हें संगीत का क्या ज्ञान? मैं संगीत के सातों सुरों का ज्ञाता हूँ। मैं अभी सिद्ध करता हूँ कि मेरी आवाज़ कितनी मधुर है और मैं कितना अच्छा गाता हूँ। ”

सियार समझ गया कि गधे को समझाना असंभव है। वह बोला, “मुझे क्षमा कर दो मित्र। मैं तुम्हारे संगीत के ज्ञान को समझ नहीं पाया। तुम यहाँ गाना गाओ। मैं बाहर खड़ा होकर रखवाली करता हूँ। ख़तरा भांपकर मैं तुम्हें आगाह कर दूंगा।”

इतना कहकर सियार बाहर जाकर एक पेड़ के पीछे छुप गया। गधा खेत के बीचों-बीच खड़ा होकर अपनी कर्कश आवाज़ में रेंकने लगा। उसके रेंकने की आवाज़ जब खेत के रखवाले के कानों में पड़ी, तो वह भागा-भागा खेत की ओर आने लगा। सियार ने जब उसे खेत की ओर आते देखा, तो गधे को चेताने का प्रयास किया। लेकिन रेंकने में मस्त गधे ने उस ओर ध्यान ही नहीं दिया।

मुसीबत को सामने आते देख सियार अपनी जान बचाकर वहाँ से भाग गया।  इधर खेत के रखवाले ने जब गधे को अपने खेत में रेंकते हुए देखा, तो डंडे से उसकी जमकर धुनाई की। गधे के संगीत का भूत उतर गया और वह पछताने लगा कि उसने अपने मित्र सियार की बात क्यों नहीं मानी।

सीख :–

  • अपने अभिमान में मित्र के उचित परामर्श को मानना संकट को बुलावा देना है।         

 

इन्हें भी पढ़ें –

1 thought on “पंचतंत्र की कहानियाँ-2022”

Leave a Comment